Aligarh Muslim University’s Minority Status: Historic Supreme Court Decision

Aligarh Muslim University

Aligarh Muslim University को अल्पसंख्यक दर्जा देने पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

8 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया। उन्होंने Aligarh Muslim University (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के फैसले को रद्द कर दिया। उन्होंने एक नई तीन जजों की बेंच गठित की। यह बेंच AMU को अल्पसंख्यक दर्जा देने का निर्णय करेगी। इस निर्णय से देश भर में बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। यह न केवल AMU के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि अन्य अल्पसंख्यक संस्थानों के भविष्य को भी बदल सकता है।

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अदालत का बहुमत और असहमति

सुप्रीम कोर्ट की सात जजों वाली संवैधानिक बेंच ने 4-3 के बहुमत से निर्णय लिया। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने एकमत से फैसला सुनाया। वहीं, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने असहमति जताई। उनके विचारों में यह जरूरी नहीं था कि 1967 के फैसले को पलटा जाए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रमुख बिंदु

सुप्रीम कोर्ट ने एक पुराने फैसले को रद्द कर दिया है। यह फैसला 1967 का था, जिसमें AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने से इनकार किया गया था अब, तीन जजों की बेंच AMU के अल्पसंख्यक दर्जे को फिर से देखेगी। यह भी जांच की जाएगी कि AMU की स्थापना मुस्लिम समुदाय द्वारा हुई थी या नहीं।

मुख्य न्यायाधीश का दृष्टिकोण

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30ए के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए नियम हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अनुच्छेद 19(6) के तहत कोई भी संस्थान विनियमित किया जा सकता है। लेकिन, अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त करने के लिए, संस्थान का अल्पसंख्यक चरित्र बनाए रखना आवश्यक है।

Aligarh Muslim University का इतिहास और विवाद की शुरुआत

Aligarh Muslim University की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान ने की थी। इसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को शिक्षा में आगे बढ़ना था। 1920 में इसे विश्वविद्यालय बनाया गया और इसका नाम Aligarh Muslim University (AMU) रखा गया।

AMU अधिनियम में संशोधन और कानूनी विवाद

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद 1951 और 1965 में शुरू हुआ। इन संशोधनों को कई लोगों ने कानूनी चुनौती दी। 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि AMU की स्थापना मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रयासों का परिणाम है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि इसे अल्पसंख्यक दर्जा दिया जाए।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का 2005 का फैसला

1981 में सरकार ने AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने वाला एक संशोधन अधिनियम पारित किया। लेकिन 2005 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया। AMU के अल्पसंख्यक दर्जे को रद्द कर दिया। इसके बाद 2006 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती दी। तब से यह मामला लंबित रहा।

सुप्रीम कोर्ट का मामला और आगे की प्रक्रिया

2019 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने इस मुद्दे को सात जजों की बेंच को भेजा। 2024 में इस मामले पर अंतिम निर्णय आया। सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के फैसले को खारिज कर दिया। तीन जजों की नई बेंच गठित की गई, जो अब AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर अंतिम निर्णय करेगी।

क्या होगा AMU का भविष्य?

अब सवाल यह उठता है कि AMU का भविष्य क्या होगा? यह विवाद न केवल AMU बल्कि देशभर के अन्य अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है। यदि AMU को अल्पसंख्यक दर्जा मिल जाता है, तो देश के अन्य अल्पसंख्यक संस्थानों पर इसका असर पड़ेगा। यह दर्जा उन्हें विशेष अधिकार दे सकता है। दूसरी ओर, यदि AMU को अल्पसंख्यक दर्जा नहीं मिलता, तो यह शिक्षा और विकास की नई राहें खोजने के लिए मजबूर होगा।

अल्पसंख्यक दर्जे का महत्व और भारतीय संविधान

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और प्रबंधित करने का अधिकार दिया गया है। लेकिन, यह अधिकार निरपेक्ष नहीं है।अनुच्छेद 19(6) के तहत इस पर नियमन की अनुमति भी दी गई है। यदि AMU को अल्पसंख्यक दर्जा मिलता है, तो इसका प्रभाव अन्य शैक्षणिक संस्थानों पर भी होगा।यह देखा जाएगा कि अन्य संस्थानों को भी अल्पसंख्यक दर्जा कैसे दिया जा सकता है।

AMU का योगदान और उसकी भूमिका

Aligarh Muslim University ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कुछ दिया है। यह विश्वविद्यालय भारत में एक प्रमुख संस्था है। यहां विभिन्न समुदायों के छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।AMU का अल्पसंख्यक दर्जा उसके मूल उद्देश्यों को और भी मजबूत कर सकता है। यह उसे विशेष पहचान भी दिला सकता है।

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