Maharashtra विधानसभा चुनाव के समय, “वोट जिहाद” शब्द फिर से चर्चा में है। 180 से अधिक संगठनों ने मुस्लिम बहुल इलाकों में चुनाव जागरूकता बढ़ाने के लिए काम किया है। मराठी मुस्लिम सेवा संघ और Maharashtra डेमोक्रेटिक फोरम ने इस अभियान का नेतृत्व किया है।
इस अभियान का उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को मतदान के महत्व के बारे में जागरूक करना है। ताकि वे अधिक संख्या में मतदान में भाग लें। लेकिन, बीजेपी ने इसे “वोट जिहाद” कहकर आलोचना की है। वहीं, संगठन इसे लोकतांत्रिक जागरूकता का अभियान मानते हैं।
Maharashtra में मुस्लिम लामबंदी का उद्देश्य
मराठी मुस्लिम सेवा संघ और Maharashtra डेमोक्रेटिक फोरम ने कहा है कि मुस्लिम समुदाय के अधिकांश लोग कम संख्या में मतदान करते हैं। इसलिए, उन्होंने Maharashtra के मुस्लिम बहुल इलाकों में मतदाताओं को समझाने के लिए बैठकें कीं। मुंबई के गोवंडी, मानखुर्द, शिवाजी नगर, भिंडी बाजार, नागपाड़ा, धारावी और अणुशक्ति नगर में बैठकें हुईं। इनमें सैकड़ों एनजीओ भी शामिल हुए। उनका लक्ष्य है कि मुस्लिम मतदाता अपने अधिकार का सही उपयोग करें। वे चाहते हैं कि उनकी आवाज़ राजनीति में सुनी जाए।
क्या है “वोट जिहाद” का मुद्दा?
बीजेपी ने इस पहल को “वोट जिहाद” कहकर आलोचना की है। उनका आरोप है कि यह संगठन मुस्लिम मतदाताओं को एक पार्टी के पक्ष में गोलबंद करने का प्रयास कर रहे हैं। बीजेपी नेताओं का कहना है कि यह सांप्रदायिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है। यह समाज में दरार डालने का काम कर सकता है। किरीट सोमैया और स्मृति ईरानी ने इस मुद्दे पर विरोध जताया है। उन्होंने इसे “वोट जिहाद” की संज्ञा दी। उनका आरोप है कि इस प्रकार की लामबंदी से हिंसा और अशांति की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
मुस्लिम संगठनों का पक्ष
मराठी मुस्लिम सेवा संघ और Maharashtra डेमोक्रेटिक फोरम के नेताओं ने इन आरोपों को खारिज किया है। उनका उद्देश्य केवल जागरूकता फैलाना है। उनका कहना है कि वे समाज में नफरत फैलाने का काम नहीं कर रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि वे मुस्लिम समुदाय को उनके वोट की शक्ति का एहसास करवा रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि वे यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि उन्हें उस पार्टी को वोट देना चाहिए जो संविधान और देश की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है।
चुनाव में मतदान का महत्व और सामुदायिक जागरूकता
इस अभियान का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि मुस्लिम मतदाताओं को वोट के महत्व के बारे में जागरूक किया जा रहा है। फकीर अहमद ने कहा है कि उन्होंने पहले भी लोकसभा चुनावों में इसी तरह का अभियान चलाया था। यह अभियान बीजेपी की सीटों को घटाने में मददगार साबित हुआ था। अब विधानसभा चुनावों में भी वे एमवीए के समर्थन में जागरूकता अभियान चला रहे हैं। इस अभियान के तहत, मुस्लिम समुदाय को यह बताया जा रहा है कि वे उन पार्टियों को चुनें जो उनके हितों के पक्ष में हों। यह भी सुनिश्चित करें कि समाज को सांप्रदायिकता से बचाए रखें।
बीजेपी का आरोप और विपक्ष का बचाव
बीजेपी नेताओं का मानना है कि यह मुस्लिम मतदाताओं को एकतरफा लामबंद करने का प्रयास है। उन्होंने इसे “वोट जिहाद” का नाम दिया है। विपक्षी नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा है कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। उनका मानना है कि मुस्लिम समुदाय के लोग एमवीए को वोट देने का निर्णय लेना उचित है। उनका यह भी तर्क है कि जब मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक के मुद्दे पर बीजेपी का समर्थन किया था, तो उसे “वोट जिहाद” का नाम नहीं दिया गया था।
क्यों है “वोट जिहाद” की राजनीति?
“वोट जिहाद” का मुद्दा देश भर में एक बड़ा विवाद है। यह राजनीतिक पार्टियों के बीच एक बड़ा मतभेद है। वे चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए इस शब्द का उपयोग करते हैं। बीजेपी का कहना है कि विपक्षी पार्टियाँ मुस्लिम वोट पाने के लिए धार्मिक संप्रदायवाद का सहारा ले रही हैं। लेकिन विपक्षी पार्टियाँ इसे लोकतंत्र का एक स्वाभाविक हिस्सा मानती हैं।
राजनीतिक ध्रुवीकरण का असर
इस तरह के मुद्दे राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देते हैं। जब एक समुदाय को विशेष रूप से वोट देने के लिए प्रेरित किया जाता है, तो अन्य समुदायों में असुरक्षा की भावना बढ़ सकती है। बीजेपी का मानना है कि इससे समाज में तनाव बढ़ सकता है। लेकिन विपक्षी पार्टियाँ इसे समान अधिकारों का हिस्सा मानती हैं।
मुस्लिम समुदाय का प्रभाव बढ़ाने का उद्देश्य
Maharashtra के कई इलाकों में मुस्लिम समुदाय का वोट बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए, राजनीतिक दल इस समुदाय को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रहे हैं। मुस्लिम संगठनों का मानना है कि समुदाय के लोग अपने मत का सही उपयोग करें। इसी कारण से मराठी मुस्लिम सेवा संघ और Maharashtra डेमोक्रेटिक फोरम जैसे संगठनों ने काम शुरू किया है।
क्या यह लामबंदी सशक्तिकरण का हिस्सा है?
कुछ लोग इस अभियान को मुस्लिम समाज के सशक्तिकरण के रूप में देख रहे हैं। उनका मानना है कि मुस्लिम मतदाताओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करना एक अच्छा काम है। उनका कहना है कि इस प्रयास से समुदाय का राजनीतिक प्रभाव बढ़ेगा। इससे उनकी समस्याओं पर विचार किया जाएगा।
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