इंदिरा गांधी का वह कौन सा फैसला जिसने पिता नेहरू को बदनाम किया और पति फिरोज को नाराज……

Which Decision of indra gandhi disappointed to his father अपने वैवाहिक जीवन को लेकर इंदिरा गांधी काफी दुखी रही पति फिरोज गांधी से रिश्ते इस मुकाम पर पहुंच गए कि उन्होंने पिता के घर का रुख किया। लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू उनके पिता के साथ देश के प्रधानमंत्री भी थे।उनका घर तीन मूर्ति भवन प्रधानमंत्री का आधिकारिक निवास था वहां इंदिरा गांधी जल्दी ही आधिकारिक मेजबान की भूमिका में भी आ गई। सिर्फ देसी विदेशी विशिष्ट अतिथियों का अतिथि ही नहीं नेहरू की विदेश यात्राओं में भी साथ रहती थी।नेहरू के बाद कौन होगा इससे जुड़ी खबरों में बताया जाता है कि नेहरू के मन में सिर्फ उनकी बेटी है इंदिरा अगले राजनीति की यात्रा की पूरी तैयारी कर रही थी।

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पंडित जवाहरलाल नेहरू की इंदिरा गाँधी पर भर्ती निर्भरता

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नेहरू के जीवन काल में ही इंदिरा गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बन गई थी। पिता के फैसलों पर भी हुए असर छोड़ रही थी आजाद भारत में किसी निर्वाचित सरकार की बर्खास्तगी का पहला फैसला पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री तत्व के दौरान ही हुआ था ।

दिलचस्प की यह बात है कि पक्के डॉक्यूमेंट नेहरू को या अवश्य बेटी इंदिरा की बदौलत मिला था सिर्फ विरोधियों ने ही नहीं बल्कि पति फिरोज गांधी ने भी इंदिरा को इसका जिम्मेदार बताते हुए फास्टेस्ट तक कह दिया था ।

नेहरू के हुए फैसले जिनके तार सीधे इंदिरा से जोड़े गए थे। इसके अलावा हुए प्रधानमंत्री आवास में रहते इंदिरा बेहद प्रभावशाली भूमिका में थी। खराब सेहत के बीच पिता नेहरू की बेटी पर निर्भरता बढ़ती गई थी उन तक पहुंचने तक फाइलों का इंदिरा गांधी के हाथों से गुजरा जरूरी हो गया था। इस तथ्य को नेहरू के भरोसेमंद माने जाने वाले मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भी स्वीकार किया था।

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सरकार और पार्टी को पता थी इंदिरा गांधी की अहमियत

Which Decision of indra gandhi disappointed to his father सरकार और पार्टी को पता थी इंदिरा गांधी की अहमियत इंदिरा गांधी ने ऐसे परिवार में जन्म लिया जो आजादी के संघर्ष की अगली पंक्ति में था। वह ऐसे पिता की पुत्री थी जिन्होंने आजादी के पहले ही अंतरिम सरकार की मुखिया के तौर पर देश के बॉर्डर संभाल ली थी।

वह खुद की आजादी की लड़ाई में सक्रिय रही शादी के बाद पति से तनावपूर्ण रिश्तों के चलते प्रधानमंत्री पिता के घर उनकी वापसी हुई ऐसे माहौल में भी इंदिरा गांधी राजनीतिक से दूर रह सकती थी पर धीरे-धीरे करके इंदिरा गांधी राजनीति की में आ गई।

बेशक नेहरू अपनी बेटी को राजनीति में आगे बढ़ते हुए ना दिखाना चाहते रहे हो लेकिन उसके वर्चस्व सरकार और पार्टी तो इंदिरा गांधी की अहमियत को बखूबी समझ रही थी । 1955 में हुए पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति की सदस्य बनी। 1957 के चुनाव प्रसार में उन्होंने जोरदार भागीदारी की । 1958 में हुए पार्टी के शक्तिशाली संगठन वर्किंग की कमेटी की सदस्य बना दी गई।

इंदिरा गांधी ने संभाली कमान

सिर्फ 41 साल की उम्र में इंदिरा को इससे भी बड़ी जिम्मेदारी सौंपने को पार्टी आतुर थी । 1959 के नागपुर अधिवेशन में यू.एन.ढवर के बाद एस.निजलिंगपा का अध्यक्ष के तौर पर निर्वाचन तय माना जा रहा था। ढवर ने अचानक वर्किंग कमेटी की बैठक बुलाई । कामराज के एजेंट पूछे उन्हें बताया गया की बैठक अगले अध्यक्ष को लेकर है ।चकित कामराज ने कहा कि उसके लिए तो निजलिंगपा का नाम तय हो चुका है।

लाल बहादुर शास्त्री ने कहा कि इंदिरा को अध्यक्ष के लिए कहा जा सकता है।गोविंद बलवंत पंत ने इंदिरा गांधी के स्वास्थ्य की चर्चा की। नेहरू ने यह कहते हुए उन्हें चुप कर दिया कि उनका स्वास्थ्य हम दोनों से बेहतर है । नेहरू का रूख पता चलने के बाद शेष औपचारिकता थी ।

हालांकि इंदिरा का यह कहना था कि उन्होंने पिता को मना कर दिया था । वह तो ढएवर के यह कहने पर तैयार हुई थी । कि इनकार का मतलब निकल जाएगा कि वह इस पद को संभाल नहीं सकती ।पंडित नेहरू जो चाहते थे वही पार्टी के नेता कर रहे थे लेकिन नेहरू कह यही रहे थे यह आप लोगों का भले फैसला है लेकिन मैं इसमें शामिल नहीं हूं यह ठीक नहीं है कि मेरे प्रधानमंत्री रहते मेरी पुत्री कांग्रेस की अध्यक्ष बन जाए।

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केरल सरकार की बर्खास्त की इंदिरा की देन

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इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री के दौरान अनुच्छेद 356 के इस्तेमाल के जरिए 50 राज्य सरकारों की बर्खास्तगी की गई । दिलचस्प है कि आजाद भारत मैं किसी निर्वाचित सरकार की पहली बर्खास्तगी में भी इंदिरा की ही निर्णायक भूमिका थी । बात अलग है कि तब हुए सरकार में नहीं थी । 5 अप्रैल 1957 को ई.एम.एस.नंबुरीदीपद को केरल की पहली लेफ्ट सरकार बनी । कांग्रेस के लिए यह पहली चुनावी झटका था । इस सरकार के सुधार कार्यक्रमों को लेकर काफी विवाद थे । विशेष कर शिक्षा क्षेत्र के सुधारने व्यापक अशांति पैदा की डेढ़ लाख से ज्यादा लोग जेल गए। 248 लोगों को मौके पर लाठी चार्ज किया गया, तमाम लोग घायल हुए।

मछुआरा समुदाय की एक गर्भवती महिला की पुलिस द्वारा जान लेने से हालात और बेकाबू हो गए । कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर इंदिरा बराबर नेहरू पर केरल सरकार की बर्खास्त की का दबाव बनाए हुए थी । इंदिरा गांधी की अगुवाई में 29 जून 1959 कांग्रेस संसदीय बोर्ड की बैठक में केरल सरकार की बर्खास्त की मांग की गई । नेहरू राजी हुए ,लेकिन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद तैयार नहीं थे। बाद में दबाव पड़ने पर 21 जुलाई 1959 को उन्होंने बर्खास्तगी के आदेश पर दस्तख़त किए।

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पंडित जवाहरलाल नेहरू हुए बदनाम तथा फिरोज खूब थे नाराज…

Which Decision of indra gandhi disappointed to his father know everything केरल सरकार की बर्खास्त की के फैसले से पंडित नेहरू की लोकतांत्रिक छवि को गहरा धक्का पहुंचा था । नेहरू के जीवनी कर एस. गोपाल के अनुसार यह एक ऐसा फैसला था जिसने नेहरू की प्रतिष्ठा को कलंकित किया था, और उन्हें कमजोर कर दिया। हालांकि इंदिरा इसे अपना फैसला मानने से इंकार करती रही। उनका कहना था,”मार्क्सवादी हमेशा मुझ पर सरकार गिराने का दोष लगाते रहे है लेकिन केंद्र राजी हुए बिना यह नहीं हो पाता।

मेरे पिता और फिरोज इससे खुश नहीं थे । लेकिन गृह मंत्री गोविंद बलवंत पंत का तो कहना था कि यही होना चाहिए था।” बर्खास्तगी के इस फैसले से भले बाद में इंदिरा ने अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की होली की फिरोज गांधी ने तो पूरी तौर पर उन्हें इसका जिम्मेदार ठहराया था।

स्वीडिश लेखक और पत्रकार बर्तिल फोक ने अपनी किताब “फिरोज: द फॉरगॉटेन गांधी” में जनार्दन ठाकुर के हवाले से लिखा कि जैसे ही फिरोज को गांधी की इस जीद का पता चला तो वह भी काफी नाराज हुए लंच में खूब झगड़ा हुए और फिरोज ने इंदिरा को फासिस्ट तक कह दिया कह डाला।

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