चीन ने ट्रंप की टैरिफ धमकियों के सामने झुकने से इनकार किया: जवाबी कार्रवाई की धमकी,

7 अप्रैल, 2025 को वैश्विक व्यापारिक मंच पर एक नया तनाव उभरा जब चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ धमकियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया। चीन ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह ट्रंप के दबाव के आगे नहीं झुकेगा और जवाबी कार्रवाई (काउंटरमेजर्स) के साथ “अंत तक लड़ने” के लिए तैयार है। यह बयान उस समय आया जब ट्रंप ने चीनी आयात पर 50% अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी दी, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध और गहरा हो गया। यह लेख इस घटनाक्रम के संदर्भ, इसके वैश्विक प्रभाव और भविष्य की संभावनाओं पर प्रकाश डालता है।

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व्यापार युद्ध की पृष्ठभूमि

डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ नीति के प्रति आक्रामक रवैया कोई नई बात नहीं है। अपने पहले कार्यकाल के दौरान भी उन्होंने चीन के खिलाफ बड़े पैमाने पर टैरिफ लगाए थे, जिसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी वस्तुओं पर प्रतिशोधी टैरिफ लागू किए थे। 2025 में सत्ता में वापसी के बाद, ट्रंप ने अपनी नीति को और सख्त करते हुए

वैश्विक व्यापार को “संतुलित” करने का दावा किया है। हाल ही में, उन्होंने चीन से आने वाले सभी सामानों पर 34% टैरिफ की घोषणा की थी, जिसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी वस्तुओं पर समान टैरिफ लगाने का फैसला किया। लेकिन अब ट्रंप ने इसे और बढ़ाते हुए 50% अतिरिक्त टैरिफ की धमकी दी है, जिससे चीनी सामानों पर कुल टैरिफ 104% तक पहुंच सकता है।

चीन ने इसे “एक गलती पर दूसरी गलती” करार देते हुए अमेरिका की इस नीति को “ब्लैकमेलिंग” और “एकतरफा धमकी” बताया। चीनी वाणिज्य मंत्रालय ने कहा, “अमेरिका का यह कदम पूरी तरह से आधारहीन है और यह एक विशिष्ट एकतरफा उत्पीड़न है। अगर अमेरिका अपनी इस नीति पर अड़ा रहा, तो चीन अपनी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों की रक्षा के लिए अंत तक लड़ेगा।”

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वैश्विक व्यापार पर प्रभाव

ट्रंप की टैरिफ नीति और चीन की जवाबी कार्रवाई का असर केवल इन दो देशों तक सीमित नहीं है। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़े खतरे के रूप में उभर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह व्यापार युद्ध वैश्विक मंदी को जन्म दे सकता है। स्टॉक मार्केट में पहले ही भारी गिरावट देखी जा चुकी है, जिसमें अमेरिका का डाउ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज पिछले सप्ताह में लगातार तीन दिनों तक नीचे गिरा। एशियाई बाजारों में भी हालात बदतर हुए हैं, जहां टोक्यो, हॉन्गकॉन्ग और सिडनी जैसे प्रमुख बाजार दशकों की सबसे बड़ी गिरावट के गवाह बने।

चीन और अमेरिका दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं। 2024 में, अमेरिका ने चीन से लगभग 439 अरब डॉलर के सामान आयात किए थे, जिसमें स्मार्टफोन से लेकर कपड़े तक शामिल थे। अगर टैरिफ 104% तक पहुंचते हैं, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं को प्रति वर्ष लगभग 3,789 डॉलर का अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ सकता है, जैसा कि येल बजट लैब के विश्लेषण में बताया गया है। इससे अमेरिकी नागरिकों की क्रय शक्ति कम होगी और महंगाई बढ़ेगी।

दूसरी ओर, चीन के लिए भी यह आसान नहीं होगा। अमेरिका उसका सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, और टैरिफ से चीनी निर्यात बुरी तरह प्रभावित होगा। हालांकि, चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए पहले से ही कई कदम उठाए हैं। उसने घरेलू खपत को बढ़ावा देने और अन्य देशों के साथ व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करने की रणनीति अपनाई है।

चीन का जवाबी रुख

चीन ने ट्रंप की धमकी के जवाब में साफ कर दिया कि वह पीछे नहीं हटेगा। चीनी दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंग्यू ने कहा, “चीन पर दबाव डालना या धमकी देना हमारे साथ बातचीत का सही तरीका नहीं है। हम अपने वैध अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए दृढ़ हैं।” चीन ने संकेत दिया है कि वह अमेरिकी वस्तुओं पर और टैरिफ बढ़ा सकता है, साथ ही दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (रेर अर्थ मैटेरियल्स) के निर्यात पर प्रतिबंध को सख्त कर सकता है, जो तकनीकी उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण हैं।

चीन की यह रणनीति केवल प्रतिशोध तक सीमित नहीं है। वह वैश्विक मंच पर खुद को एक जिम्मेदार और स्थिर व्यापारिक साझेदार के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है। जहां ट्रंप की नीति मित्र और शत्रु दोनों देशों को निशाना बना रही है, वहीं चीन अन्य देशों के साथ बातचीत के लिए दरवाजे खुले रखने की बात कह रहा है। यह रणनीति उसे उन देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने में मदद कर सकती है जो अमेरिकी टैरिफ से प्रभावित हैं।

ट्रंप की रणनीति और आलोचना

ट्रंप ने अपनी टैरिफ नीति को “अमेरिकी अर्थव्यवस्था को फिर से महान बनाने” का जरिया बताया है। उनका दावा है कि यह नीति व्यापार घाटे को कम करेगी और अमेरिकी विनिर्माण को बढ़ावा देगी। उन्होंने कहा, “टैरिफ हमें बातचीत के लिए बड़ी ताकत देते हैं। मैंने इसे अपने पहले कार्यकाल में अच्छी तरह इस्तेमाल किया था, और अब हम इसे एक नए स्तर पर ले जा रहे हैं।” हालांकि, उनकी यह नीति कई लोगों के लिए चिंता का कारण बनी हुई है।

अमेरिका के सीनेट माइनॉरिटी लीडर चक शूमर ने ट्रंप की नीति को “राष्ट्रीय मंदी की तैयारी” करार दिया। उन्होंने कहा, “ट्रंप की टैरिफ नीति एक भयानक गलती है। अगर इसे उलटा नहीं गया, तो अमेरिका को लंबे समय तक आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है।” अर्थशास्त्रियों का भी मानना है कि टैरिफ से अमेरिकी उपभोक्ताओं को नुकसान होगा, क्योंकि आयातित सामानों की कीमतें बढ़ेंगी।

वैश्विक प्रतिक्रिया

चीन और अमेरिका के बीच बढ़ता तनाव केवल इन दोनों तक सीमित नहीं है। यूरोपीय संघ (ईयू) ने भी ट्रंप के 20% टैरिफ के जवाब में “मजबूत जवाबी कार्रवाई” की बात कही है। फ्रांसीसी अधिकारियों ने अमेरिकी उत्पादों पर कर लगाने का सुझाव दिया है। जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश, जो अमेरिका के करीबी सहयोगी हैं, भी 24% और 25% टैरिफ का सामना कर रहे हैं। इससे वैश्विक व्यापार में एक नई अस्थिरता पैदा हो रही है।

कई देश ट्रंप के साथ बातचीत करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि टैरिफ कम किए जा सकें। ट्रंप ने दावा किया है कि 50 से अधिक देशों ने उनसे संपर्क किया है। लेकिन उनकी “दवा” वाली टिप्पणी—कि “कभी-कभी आपको कुछ ठीक करने के लिए दवा लेनी पड़ती है”—ने वैश्विक नेताओं को संतुष्ट करने के बजाय और चिंतित कर दिया है।

भविष्य की संभावनाएं

इस व्यापार युद्ध का भविष्य अनिश्चित है। अगर ट्रंप अपनी धमकी को लागू करते हैं और चीन जवाबी कार्रवाई करता है, तो दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को भारी नुकसान हो सकता है। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, जो पहले से ही कोविड-19 और अन्य संकटों से प्रभावित है, और कमजोर हो सकती है। दूसरी ओर, अगर दोनों देश बातचीत की मेज पर आते हैं, तो तनाव कम हो सकता है। हालांकि, ट्रंप ने चीन के साथ सभी प्रस्तावित बैठकों को रद्द करने की धमकी दी है, जिससे समझौते की संभावना कम दिखती है।

चीन के लिए यह एक परीक्षा की घड़ी है। उसकी “अंत तक लड़ने” की प्रतिबद्धता उसकी आर्थिक और राजनीतिक ताकत को परखेगी। वहीं, ट्रंप की नीति अमेरिका के भीतर भी विवाद का विषय बन रही है, जहां कुछ लोग इसे देशभक्ति मानते हैं तो कुछ इसे आर्थिक आत्मघात।

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