DRS, India vs Austraila, यह पूरी घटना वाकई में क्रिकेट के फैंस के लिए काफी निराशाजनक है। मिचेल मार्श के मामले में जो हुआ, वह निश्चित तौर पर विवाद का विषय है। यदि थर्ड अंपायर को “कंफ्लूसिव एविडेंस” नहीं मिला, तो उन्होंने फील्ड अंपायर के फैसले को कायम रखा। लेकिन जब पिछली बार केएल राहुल के मामले में भी समान स्थिति थी, तो आउट देने का निर्णय किया गया था। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि फैसले लेने में मानकों का दोहरा चरित्र क्यों है?
- DRS का उद्देश्य:
डीआरएस का मकसद होता है स्पष्ट और निष्पक्ष फैसले देना, लेकिन ऐसा लगता है कि कभी-कभी यह विवादित फैसलों का कारण बनता है। मिचेल मार्श के मामले में गेंद पहले पैड को लगती दिख रही थी, फिर बैट को, लेकिन थर्ड अंपायर ने “बेनिफिट ऑफ डाउट” बल्लेबाज को दिया। - केएल राहुल का मामला
पिछली बार केएल राहुल के मामले में समान परिस्थितियों में, थर्ड अंपायर ने “बेनिफिट ऑफ डाउट” गेंदबाज को दिया और उन्हें आउट करार दिया गया। - ऑस्ट्रेलिया में विवाद:
यह पहली बार नहीं है जब ऑस्ट्रेलिया में भारत के खिलाफ अंपायरिंग को लेकर विवाद हुआ है। स्टीव बकनर के दौर से लेकर अब तक कई बार ऐसे फैसले सामने आए हैं, जहां भारतीय टीम के साथ कथित तौर पर पक्षपात हुआ है। - फैंस की नाराजगी:
फैंस इस बात से नाराज हैं कि एक जैसी परिस्थितियों में अलग-अलग फैसले क्यों लिए गए। क्या भारतीय टीम के प्रति ऐसा रवैया अन्यायपूर्ण है? - कमेंटेटर्स और क्रिकेट विशेषज्ञों का मत:
कमेंटेटर्स और विशेषज्ञों ने भी इस घटना पर सवाल उठाए हैं। कुछ ने इसे ‘गलत फैसले’ का उदाहरण बताया, तो कुछ ने इसे ‘सिस्टम की खामी’ करार दिया।
आपकी राय महत्वपूर्ण है:
क्या मिचेल मार्श को आउट देना चाहिए था? क्या भारतीय टीम के साथ दोहरा मापदंड अपनाया गया? आपकी राय हमें जरूर बताएं।
सुझाव:(DRS, India vs Austraila)
क्रिकेट को निष्पक्ष बनाए रखने के लिए तकनीकी सिस्टम का सही और समान उपयोग सुनिश्चित करना चाहिए। ऐसे विवाद से खेल की प्रतिष्ठा पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
अगर यह मुद्दा आपको भी परेशान करता है, तो इसे शेयर करें और अपनी राय जाहिर करें।
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